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Saturday, April 6, 2013

जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!


PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
चंडीगढ़। हिमाचल के मंडी जिला की लड़भडोल तहसील के सिमस गांव में एक देवी का मंदिर ऐसा है जहां पर निसंतान महिलाओं के फर्श पर सोने से संतान की प्राप्ति होती है। नवरात्रों में इस मंदिर हिमाचल के पडोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर की ओर रूख करती हैं जिनकी संतान नहीं होती है। इस मंदिर कैसे निसंतान महिलाएं संतान होने का सुख पाती हैं और कौन है यह चमत्कारी देवी?
PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के लड़-भड़ोल तहसील के सिमस नामक खूबसूरत स्थान पर स्थित माता सिमसा मंदिर दूर दूर तक प्रसिद्ध है। माता सिमसा या देवी सिमसा को संतान-दात्री के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष यहां  निसंतान दंपति संतान पाने की इच्छा ले कर माता सिमसा के दरबार में आते हैं। नवरात्रों में होने वाले इस विशेष उत्सव को स्थानीय भाषा में  सलिन्दरा कहा जाता है। सलिन्दरा का अर्थ है स्वप्न आना होता है।
PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
नवरात्रों में निसंतान महिलायें मंदिर परिसर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती है माता सिमसा उन्हें स्वप्न में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है।
PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
मान्यता के अनुसार, यदि कोई महिला स्वप्न में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है। जैसे कि, यदि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझ लें कि लड़का होगा। अगर किसी को स्वप्न में भिन्डी प्राप्त होती है तो समझें कि संतान के रूप में लड़की प्राप्त होगी। यदि किसी को धातु, लकड़ी या पत्थर की बनी कोई वस्तु प्राप्त हो तो समझा जाता है कि उसके संतान नहीं होगी।
PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
 कहते हैं कि  निसंतान बने रहने स्वप्न प्राप्त होने के बाद भी यदि कोई औरत अपना बिस्तर मंदिर परिसर से नहीं हटाती है तो उसके शरीर में खुजली भरे लाल-लाल दाग उभर आते हैं।  उसे मजबूरन वहां से जाना पड़ता है। संतान प्राप्ति के बाद लोग अपना आभार प्रकट करने सगे-सम्बन्धियों और कुटुंब के साथ मंदिर में आते हैं। यह मंदिर बैजनाथ से 25 किलोमीटर तथा जोगिन्दर नगर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
PICS: जानिए इस मंदिर की अनोखी दास्तां, जहां महिलाओं को सोते ही मिलती है संतान!
सिमसा माता मंदिर के पास यह पत्थर बहुत प्रसिद है । इस पत्थर को दोनों हाथों से हिलाना चाहो तो यह नही हिलेगा और आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से इस पत्थर को हिलाओगे तो यह हिल जायेगा ।

Friday, March 22, 2013

One bride for five brothers


One bride for five brothers


Grooms' sex-rota in one-room shack

Rajo Verma, 20, who is married to five brother
Clan ... Rajo Verma with Jay and, l-r, Sant Ram, Bajju, Gopal, Guddu and Dinesh


A YOUNG mum told last night how she has five husbands — who are all BROTHERS.

Rajo Verma, 21, lives in a one-room shack with all five, sleeping with a different one each night on a rota.
The housewife has no idea which one is the father of her toddler son.
She said: “Initially it felt a bit awkward. But I don’t favour one over the other.”
Husband Guddu, 21 — the first to make her his bride — insisted: “We all have sex with her but I’m not jealous. We’re one big happy family.”
The couple got hitched in an arranged Hindu marriage four years ago and he remains her only official spouse.
Rajo Verma, 20, who is married to five brother
Lovenest ... the single-room shack where the five brothers have sex rota
COVER ASIA PRESS / SHARIQ ALLAQABAND
But the custom in their village is she had to take as husbands his brothers Bajju, 32, Sant Ram, 28, Gopal, 26, and Dinesh — who married her last year when he turned 18.
Eldest brother Bajju said: “I consider her my wife and sleep with her like my brothers.” Rajo cooks, cleans and looks after 18-month-old Jay while her hubbies go out to work in Dehradun, northern India.
She said of the ancient tradition, called polyandry: “My mother was also married to three brothers so when I got wed I knew I had to accept all of them as my husbands.
“I sleep with them in turn. We don’t have beds, just lots of blankets on the floor.
“I get a lot more attention and love than most wives.
Rajo Verma, 20, who is married to five brother
Housewife ... Rajo Verma cooks, cleans and brings up Jay while husbands work
COVER ASIA PRESS / SHARIQ ALLAQABAND

source

Friday, March 15, 2013

यहां है रावण की असली लंका


PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!
रांची। विश्व के महान धर्मग्रंथों में से एक रामायण विश्व को करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि दूसरे धर्मों के लोगों की भी इससे श्रद्धा जुड़ी हुई है। भगवान विष्णु के अवतार और लगभग 17 लाख वर्ष पूर्व हो चुके विश्व के महानतम राजा श्रीराम के जीवन से जुड़ी इस कहानी पर अब तक कई शोध हो चुके हैं और हो रहे हैं। कई शोधकर्ता रामायण को कोरी कल्पना कहकर उसे सीधे तौर पर नकार देते हैं, तो कईयों ने तथ्यों और प्रमाणों के साथ इसे सच्चा इतिहास सिद्ध करने का प्रयास किया है।

रामायण की तरह उससे जुड़े स्थान भी शोधकर्ताओं के विवाद और कौतूहल के विषय रहे हैं। जिस तरह राम के जन्मस्थान अयोध्या के विवाद ने भले ही सांप्रदायिक रूप ले लिया हो, पर उसके अलावा कई स्थान तर्क-वितर्क के केंद्र में हैं पर उन धार्मिक विवाद नहीं हुआ।

इन्हीं में से एक प्रमुख स्था है लंका। आम लोग नाम के आधार पर श्रीलंका को रावण की लंका मानते हैं, पर कई शोधकर्ता इससे सहमत नहीं हैं।
PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!
5 अक्टूबर, सन् 1971 को प्रख्यात इतिहासकार एच. डी. संकलिया की एक रिपोर्ट अंग्रेजी दैनिक 'द स्टेट्समैन' में प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका नहीं बल्कि झारखंड का छोटानागपुर क्षेत्र ही रामायण की लंका है। संकलिया का निष्कर्ष था कि रामायण प्रारंभिक लौह-युग से जुड़ी गाथा है और इस पवित्र महाकाव्य में वर्णित लंका तो वर्तमान श्रीलंका नामक द्वीप हो ही नहीं सकती।

PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!
महिसादल और राजार धिपी से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर यह पता चलता है कि इस शुरुआती संस्कृति और सभ्यता को एक लोहा उत्पादन करने वाली जाति ने या तो नष्ट कर दिया या फिर विस्थापित कर दिया।
अकेले रांची जिले में ही असुरों के किले और कब्रिस्तान पाए गए हैं। आस-पास के सैंकड़ों गांवों में प्राचीन लंबी कद-काठी वाली प्रजाति के मानवों से जुड़े अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन्होंने सभ्यता का लंबा सफर तय किया और उसके शिखर तक पहुंचे। असुरों के कब्र बिल्कुल अव्यवस्थित क्रम में मिले हैं जिन्हें स्लैब द्वारा चिन्हित किया गया है। इनके छत के पत्थर सामान्यतया 8 फीट लंबे हैं पर कहीं-कहीं 10 से 12 फीट भी। वह कहते हैं, "वह लोहे का संदूक, जिसमें शिव का धनुष रखा गया था और जिसे केवल राम ही उठा सके थे, एक उच्चतम तकनीक का परिचय देता है।"

PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!

इतिहासकार एच. डी. संकलिया निष्कर्ष के रूप में लिखते हैं कि रामायण प्रारंभिक लौह युग से जुड़ा है। यह बात उनके हथियारों से साबित हो जाती है। उस काल में झारखंड की असुर जाति द्वारा लोहा गलाने के उद्योग समृद्ध रूप में थे।

PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!
अपने रिपोर्ट में संकलिया इन सब बातों के पुरातात्विक, भौगौलिक और जैववैज्ञानिक प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं। उनके निष्कर्षों के अनुसार रामायण की अधिकतर घटनाएं वर्तमान के उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड के छोटानागपुर पठार व पूर्वी मध्यप्रदेश में 1500 ईसा पूर्व के आस-पास घटित हुई हैं। ईसा पूर्व 2000 से 1500 के बीच की एक व्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण के लिए उन्होंने कौशाम्बी, प्रह्लादपुर, चिरांद, सोनपुर आदि स्थानों पर खुदाई की बात कही थी।

PHOTOS : श्रीलंका नहीं, यहां है रावण की असली लंका, देखिए सबूत!
उनके अनुसार, रामायण की लंका छोटानागपुर पठारी क्षेत्र (वर्तमान में झारखंड के रांची व हजारीबाग जिले) में ही कहीं रही होगी और 'वानर' व 'राक्षस' कोई और नहीं बल्कि यहां की वनवासी (आदिवासी) जातियां हैं। झारखंड के सबसे पुराने निवासी असुर हैं, जो स्वयं को महिषासुर के वंशज मानते हैं।

Tuesday, February 26, 2013

भगवान शिव के पहले पूजा जाता है रावण...

उदयपुर.यह स्थान है भगवान कमलनाथ महादेव, जो झीलों की नगरी उदयपुर से 80 किमी दूर झाड़ोल तहसील में स्थित है।   

कहा जाता है, इस मंदिर की स्थापना स्वयं लंकापति रावण ने की थी, यह वह स्थान है जहां भगवान शिव ने रावण की नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित किया था। 

साथ ही ऐसी मान्यता है कि यदि भगवान शिव की पूजा से पहले रावण की पूजा ना की जाये तो सारा कर्म काण्ड व्यर्थ जाता है अर्थात पूजा का कोई फल नहीं मिलता।

Sunday, February 17, 2013

1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी


PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
इंदौर। ग्यारहवीं शताब्दी में मालवा पर शासन करने वाले परमार राजाओं ने मंदसौर से 165 और भानपुरा से 26 किमी दूर एक अद्भुत किले का निर्माण कराया था। आज यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसकी बनावट और शिल्पकारी को देख वैभव के चरमकाल में इसकी बुलंदियों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। किले में गुप्त और परमार काल की चौथी और पांचवीं शताब्दी की मूर्तियां जहां इसके अद्वितीय मूर्तिशिल्प को दर्शाती हैं, वहीं किले में बने विभिन्न भवन इसके सामरिक महत्व को भी प्रदर्शित करते हैं। इस सबसे बढ़कर किले से रहस्य और रोमांच की एक अलहदा कहानी भी जुड़ी है।
PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील के नावली गांव में पहाड़ी पर बना हुआ है प्राचीन हिंगलाजगढ़ किला। परमार काल में यह किला अपने वैभव के चरम पर था। किले में विभिन्न कालखंडों की प्रस्तर मूर्तिशिल्प कलाकृतियां आज भी मौजूद हैं। हिंगलाजगढ़ किला लगभग 800 वर्षों तक मूर्तिशिल्प कला का केंद्र रहा है। इस किले में मिली मूर्तियां गुप्त और परमार काल की हैं।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
 किले में मिली सबसे पुरानी मूर्तियां तो लगभग 1600 साल पुरानी हैं और चौथी व पांचवीं शताब्दी की मानी जाती हैं। यहां से नंदी और उमा-महेश्वर की प्रतिमाओं को फ्रांस और वाशिंगटन में हुए इंडिया फेस्टीवल में भी भेजा गया था। जहां यह मूर्तियां अंतरराष्ट्रीय मंच पर वाहवाही लूटने में कामयाब रहीं थीं।ीं

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
हिंगलाजगढ़ किले का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में परमार कालिन राजाओं ने किया था। इसके बाद यहां चंद्रावतों का शासन आया तो यह खंडहरों में तब्दील हो गया। कालांतर में होलकर स्टेट का शासन आया तो यशवंतराव होलकर ने इसका पुन निर्माण कराया। देवालयों, मठों एवं रहवासी मकानों के पत्थरों का उपयोग किया और इस किले को छावनी के रूप में इस्तेमाल किया।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
किले में मिले पाली लिपी में लिखे प्राचीन शिलाखंड मिले हैं, जो इस किले के प्राचीन इतिहास के बारे में बताते हैं। इसके अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले चित्तौड़ पर शासन करने वाली तक्ष या तक्षक जाति का संबंध मोरी जनजाति से था। परमार इसी मोरी जनजाति के वंशज थे। सियालकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में है) पर 515 से 540 के बीच शासन करने वाले हूण साम्राज्य का विनाश कर दिया था। बाद में इन हूणों ने तक्षकों को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और यहीं से हिन्दू स्वातंत्र्य पर इस्लाम की तलवार लहराने लगी।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
परमार काल में हिंगलाजगढ़ दुर्ग सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था और परमारों ने इसे मजबूत बनाने का काम किया। 1281 में हाड़ा शासक हालू ने इस किले पर कब्जा कर लिया और बाद में यह किला चंद्रावत शासकों के अधीन आ गया। 1773 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने लक्ष्मण सिंह चंद्रावत को पराजित कर किले पर आधिपत्य जमा लिया।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
होलकर काल में इस किले की कई इमारतों का नवीनीकरण किया गया, जिसमें हिंगलाज माता मंदिर, राम मंदिर और शिव मंदिर प्रमुख हैं। हालांकि इस किले पर कई राजवंशों ने आधिपत्य जमाया, लेकिन किसी ने भी इसे अपनी स्थायी राजधनी नहीं बनाया। बल्कि इस किले का उपयोग छुपने या अपनी ताकत बढ़ाने की जगह के रूप में अधिक किया।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
हिंगलाजगढ़ दुर्ग का निर्माण सामरिक महत्व के अनुसार किया गया था। इसमें चार पाटनपोल, सूरजपोल, कटरापोल और मंडलेश्वरी पोल के नाम से चार दरवाजे हैं। पहले तीन दरवाजे पूर्वमुखी और मंडलेश्वरी दरवाजा पश्चिम मुखी है। किले में पानी की पूर्ति के लिए सूरजकुंड नामक जलाशय भी बनवाया गया था।

PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
ऐतिहासिक महत्व के हिंगलाजगढ़ दुर्ग का पुनरुत्थान होगा। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने हाल ही में इसका सर्वे किया। पुरातत्व विभाग अहमदाबाद से आए कंजरवेशन आर्किटेक्ट आशीष वी. ट्रमादिया, पुरातत्व अधीक्षक अहमदाबाद वी. नायर, पुरातत्वविद् शाश्वत नायडू एवं भानपुरा पुरातत्व संग्रहालय के जे.पी. शर्मा ने हिंगलाजगढ़ किले का सर्वे किया।


कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन


इस महाराजा ने कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन आज भी पटवारी के पास है रिकार्ड
चंडीगढ़। भगवान नामदेव की तरह गांव खानपुर के लगभग 800 परिवारों को कुत्तों में न सिर्फ भगवान नजर आता है, बल्कि वे तब तक खाना नहीं खाते जब तक कुत्ते भोग न लगा लें। पटियाला-चंडीगढ़ रोड पर स्थित गांव खानपुर में दशकों से कुत्तों की पूजा की जाती है। ये कोई आम कुत्ते नहीं, बल्कि करोड़ों की जायदाद के मालिक हैं। यहां कुत्तों का डेरा बना हुआ है जिसकी कई लगभग 160 बीघा जमीन यहां रहने वाले कुत्तों के नाम पर है।यह जमीन राजस्व रिकार्ड में आज भी कुत्तों के नाम ही है इस जमीन का यदि आज भी पता करना हो तो यह पटवारी के रजिस्टर में दर्ज है
इस महाराजा ने कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन आज भी पटवारी के पास है रिकार्ड
डेरे के महंत अजय गिरी बताते हैं कि पटियाला के संस्थापक बाबा आला को जब उक्त डेरे में गद्दीनशीन बाबा भगवान गिर जी की महानता का पता चला तो उन्होंने डेरे में जाकर बाबा से आशीर्वाद लिया।

इस महाराजा ने कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन आज भी पटवारी के पास है रिकार्ड
 उन्होंने बाबा को डेरे के आसपास की कई हजार एकड़ जमीन दान में देनी चाही, लेकिन बाबा ने खुद अपने नाम पर जमीन लेने की बजाय बेजुबान कुत्तों के नाम जमीन करने को कह दिया ताकि बाद में उनकी गद्दी पर बैठने वाले महंतों के मन में जमीन को लेकर कभी लालच न आए। तब से लेकर आज तक यह जमीन कुत्तों के नाम चली आ रही है।

इस महाराजा ने कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन आज भी पटवारी के पास है रिकार्ड
डेरे में भगवान शिव का मंदिर स्थित है। कुत्तों को मिस्सी रोटी, लस्सी समेत स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। महंत डेरे के चबूतरे पर खड़े होकर आयो..आयो की आवाज लगाते हैं और देखते ही देखते दूरदराज बैठे कुत्तों का झुंड वहां  आ जाता है।

इस महाराजा ने कुत्तों के नाम कर दी थी करोड़ों की जमीन आज भी पटवारी के पास है रिकार्ड
महंत अपने हाथों से इन्हें भोग लगाते है। उसके बाद श्रद्धालुओं को लंगर बांटा जाता है। सुबह-शाम इनकी आरती की जाती है, जिसमें आसपास के दर्जनों गांवों के लोग कुत्तों से मन्नत मांगने आते हैं। इस दौरान लोग घरों से कुत्तों के लिए कई व्यंजन तक बनाकर लाते हैं। महंत अजय गिरी के अनुसार जमीन ठेके पर है और कमाई का सारा पैसा डेरे के सुधार व कुत्तों की सेवा में लगाया जाता है।

आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव


चंडीगढ़। चिनाब नदी की दास्तां सुनकर आपको यह एहसास हो जाएगा की महाभारत के भीम का गुस्सा कितना भयानक था। कहते हैं चिनाब नदी का बहाव देश के दूसरे किसी भी नदी से कहीं ज्यादा तेज है। चिनाब नदी की पहचान ही तेज बहाव वाली नदी के तौर पर की जाती है। जम्मू के अखनूर में चिनाब नदी के किनारे एक किला है। वैसे तो किला अब अपनी पहचान खो रहा है। लेकिन किले के अंदर एक दस्तावेज है।

उस दस्तावेज में एक कहानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ऐसी कहानी जो पांच हजार साल पहले गुजरे एक महापुरुष को फिर से जिंदा करती है। नदी के आसपास एक गुफा है। गुफा में एक छोटे बच्चे के पैर के निशान हैं। एक गाय के पैरों के निशान हैं। उस पैर के निशान के रहस्य भी पांडवों के अज्ञातवास से शुरु होती है।
PICS: भीम ने लगाई थी ऐसी दहाड़, आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव
PICS: भीम ने लगाई थी ऐसी दहाड़, आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव

दर-ब-दर भटकने के बाद पांडव अज्ञातवास के लिए गुफा में आए थे। लेकिन जब पांडवों को पता चला कि अखनूर का यह इलाका राजा विराट के हैं। पांचों पांडवों ने लगा कि अब छुपने का कोई और जरिया नहीं बचा है तो पांचों वेष बदलकर राजा के यहां नौकरी मांगने गए। राजा विराट की विराट नजर उन्हें पहचान तो लेती हैं लेकिन राजा कुछ बोले नहीं। राजा विराट ने पांचों भाइयों को नौकरी पर रख लिए। महाबली भीम राजा के यहां रसोईया नियुक्त किए गए। दिन भर काम करने के बाद शाम को भीम एक ऐसी जगह पर तपस्या करने जाते थे जिसके बारे में राज्य के किसी भी व्यक्ति को कोई पता नहीं होता था। खुद राजा भी नहीं जानते थे कि भीम कहां जाते हैं। पांडवों के लिए अज्ञातवास का समय काटना था।

PICS: भीम ने लगाई थी ऐसी दहाड़, आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव
नौकरी के दौरान तो कोई दिक्कत नहीं आ रही थी। लेकिन तपस्या के समय काफी कठिनाई होती थी। भीम उस कठिनाई को दूर कर सकते थे। अगर भीम की ताकत का राज खुल गया तो पूरी कहानी तब्दील हो जाएगी। अज्ञातवास की समय सीमा फिर बढ़ जाएगी। समय गुजरता गया। भीम के दिन नौकरी और तपस्या के बीच गुजर रहे थे। लेकिन एक दिन बड़ी ही अजीब सी घटना हुई। चिनाब के किनारे एक जगह पर बैठकर भीम तपस्या में लीन थे। अचानक चिनाब का पानी तेज आवाज के साथ बहने लगता है। 

PICS: भीम ने लगाई थी ऐसी दहाड़, आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव
भीम की तपस्या में विघ्न पड़ रहा था। वो हर हाल में अपने गुस्से को शांत रखना चाहते थे। क्योंकि उन्हें पता था कि गुस्से में आकर अगर उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया तो राज खुल जाएगा। लिहाजा वो चिनाब से मिन्नत करते हुए कहे कि कम से कम उस वक्त वो शांत हो जाए जब वो तपस्या कर रहे होते हैं। 

PICS: भीम ने लगाई थी ऐसी दहाड़, आज भी शांत है इस जगह नदी का बहाव
चिनाब भीम की बात नहीं अनदेखी कर देता है। भीम बार-बार उससे शांति होने की प्रार्थना की। लेकिन जितना भीम प्रार्थना करते चिनाब जलधारा उतनी ही उग्रता और वेग से बहने लगी। धीरे धीरे भीम का सब्र जवाब देता दिया। वो अपनी जगह से खड़े होकर इतनी तेज गरजे कि चेनाब का पानी बहना भूल गया। औऱ चिनाब की लहरें शांत हो गई। जो कि आजतक उस जगह नदी का बहाव शांत है।